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 रोटी: रवीन्द्र कुशवाहा

रोटी: रवीन्द्र कुशवाहा

 



रोटी

यह  रोटी  है

यह  सिर्फ  पेट  भरने

के    लिए    ही   नहीं

बल्कि इससे आत्मा की

तृप्ति होती है 

यह  रोटी  है। 

यह कितनी मेहनत की

गरीबों   के   खून   की 

मजदूरों   के   पुण्य की 

किसानों  के पसीनों की

बनी होती है 

यह रोटी है।

आज   एक   शक  है 

इसपर किसका हक है 

यह   यक्ष   प्रश्न   है  ?

क्योंकि इन 

गरीबों, मजदूरों, किसानों को 

यह दो जून को भी उपलब्ध

नहीं  होती  है 

यह  रोटी  है।

यह   इन्हीं   गरीबों   के 

सुकर्मों  का  ही  फल  है

पर यह अमीरों को ही क्यों ?

प्राप्त होती है 

यह  रोटी  है। 

किस्मत  की  बड़ी  खोटी  है

आज सामंती खूनी  पन्जों में

फंसी रोती है 

यह  रोटी  है।

लेकिन इससे ही आत्मा की 

तृप्ति होती है

यह  रोटी  है ।।

कवि-कलाकार रवीन्द्र कुशवाहा 

प्रयागराज



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