नशा मुक्ति : चंद्रकला भरतिया
" नशा मुक्ति "
हाय! हाय! ये नशा।
जानलेवा नशा।
पल- पल मुझे तड़पाए।
हाय! हाय! ये नशा।।
जितना दूर मैं रहना चाहूँ।
उतना अधिक पास ये आत जावै।
न करूँ नशा तो, व्याकुलता बढ़ती जावै।
हाय! हाय! ये नशा, जानलेवा नशा।।
मुझको लाचार, बेबस बनाता।
हाथ- पाॅंव ढीले पड़ जाते।
काम कोई ढंग से नहीं हो पाता।
छोटे- बड़े सभी, फटकारते दिन- रात।
हाय! हाय! ये नशा, जानलेवा नशा।।
बीडी, सिगरेट, तंबाकू ,शराब
बहुत खतरनाक हैं, जान पर बन आती।
रोग कई घेर लेते, मौत पास आती।
छोड़ना चाहता हूँ मैं, पर छोड़ नहीं पाता हूँ।
हाय! हाय! ये नशा ,जानलेवा नशा।।
नशा मुक्ति केंद्र में भरती हुआ कई बार।
दूर कुछ दिन, रहा नशे से।
फिर ढाक के वही तीन पात।
परेशान बहुत रहता हूँ यारों।
तुम ही कोई मार्ग सूझा दो।
अपने मित्र को बर्बादी से बचा लो।
हाय! हाय! ये नशा ,जानलेवा नशा।।
करना ही हो नशा तो,
परोपकार ,इंसानियत, ईमानदारी का करो यारों।
दुर्गुणों से दूर रह,
खूब निभाओ, कर्तव्य अपने।
परिवार, समाज, देश में,
आदर ,मानसम्मान पाओ।
जग में नाम कमाओ।।
हाय! हाय! ये नशा, जानलेवा नशा।।
चंद्रकला भरतिया
नागपुर महाराष्ट्र.
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